धर्ममुंगेर।हवेली खड़गपुर
गौ माता, बछड़ों और दूध वाले ग्वालों की आराधना का त्योहार है गोपाष्टमी : योगेश्वर,
सत्यनारायण पूजा का आयोजन,
गोपाष्टमी गौ माता, बछड़ों और दूध वाले ग्वालों की आराधना का त्योहार है। उपरोक्त बातें गोपालिनी सभा के सचिव योगेश्वर गोस्वामी ने कही। उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म में गोपाष्टमी का विशेष महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार गोपाष्टमी हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। यह धार्मिक पर्व गोकुल, मथुरा, ब्रज और वृंदावन में मुख्य रूप से मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन श्रद्धा पूर्वक गौ पूजन करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
भगवान श्रीकृष्ण ने माता से रखा था गौचारण का प्रस्ताव :-
उन्होंने कहा कि श्रीमद भागवत पुराण के अनुसार श्री कृष्ण ने माता यशोदा से गौचारण का प्रस्ताव रखा था। तब शाण्डिल्य ऋषि ने भगवान कृष्ण की जन्मपत्री देखकर कार्तिक शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि को गौचारण का मुहूर्त निकाला। बाल कृष्ण खुश होकर नंगे पांव ही अपने ग्वाल-बाल मित्रों के साथ गायों को चराने वृन्दावन गए। आगे-आगे गौएं और उनके पीछे -पीछे बांसुरी बजाते हुए श्रीकृष्ण और बलराम, ग्वालबाल गौचारण लीला करने लगे।
गायों और ग्वालों की रक्षा के लिए पड़ा श्रीकृष्ण का नाम ‘गोविन्द’ :-
उन्होंने कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने गायों और ग्वालों की रक्षा के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर रखा था। आठवें दिन इंद्र अपना अहम त्यागकर भगवान कृष्ण की शरण में आए,। उसके बाद इंद्र की कामधेनू गाय ने भगवान का अभिषेक किया और इंद्र ने भगवान को गोविंद कहकर सम्बोधित किया।
बछड़े सहित गाय की पूजा करने का है विधान :-
गोपाष्टमी के दिन प्रातःकाल में ही गायों को स्नान आदि कराया जाता है और गऊ माता को मेहंदी, हल्दी, रोली के थापे लगाए जाते हैं। इस दिन बछड़े सहित गाय की पूजा करने का विधान है। धूप, दीप, गंध, पुष्प, अक्षत, रोली, गुड़, वस्त्र आदि से गायों का पूजन किया जाता है और आरती उतारी जाती है। इसके बाद गायों को घास दिया जाता हैं। गाय की रक्षा एवं पूजन करने वालों पर सदैव श्रीविष्णु की कृपा बनी रहती है।
उन्होंने कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने गायों और ग्वालों की रक्षा के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर रखा था। आठवें दिन इंद्र अपना अहम त्यागकर भगवान कृष्ण की शरण में आए,। उसके बाद इंद्र की कामधेनू गाय ने भगवान का अभिषेक किया और इंद्र ने भगवान को गोविंद कहकर सम्बोधित किया।
बछड़े सहित गाय की पूजा करने का है विधान :-
गोपाष्टमी के दिन प्रातःकाल में ही गायों को स्नान आदि कराया जाता है और गऊ माता को मेहंदी, हल्दी, रोली के थापे लगाए जाते हैं। इस दिन बछड़े सहित गाय की पूजा करने का विधान है। धूप, दीप, गंध, पुष्प, अक्षत, रोली, गुड़, वस्त्र आदि से गायों का पूजन किया जाता है और आरती उतारी जाती है। इसके बाद गायों को घास दिया जाता हैं। गाय की रक्षा एवं पूजन करने वालों पर सदैव श्रीविष्णु की कृपा बनी रहती है।
गोपाष्टमी पर गौ पूजन एवं सत्यनारायण पूजन का आयोजन,
प्रत्येक वर्ष की तरह गोपाष्टमी पर गोपालनी सभा द्वारा श्रीकृष्ण की प्रतिमा स्थापित कर गौ पूजन एवं सत्यनारायण पूजन का आयोजन किया गया। गोपालनी सभा के सचिव योगेश्वर गोस्वामी ने बताया कि प्रत्येक वर्ष की तरह गोपाष्टमी पर गोपालनी सभा द्वारा श्रीकृष्ण की प्रतिमा स्थापित कर गौ पूजन एवं सत्यनारायण पूजन का आयोजन किया गया। मौके पर गोपाल ने सभा के उपाध्यक्ष अरुण केसरी, मुख्य पार्षद प्रभु शंकर, अनिल कुमार सिंह, उमेश चौरसिया, राजेंद्र मंडल, मनोज कुमार रघु, रेखा सिंह चौहान, डॉ.अशोक कुमार सिंह, राजेश ठाकुर सहित अन्य सदस्य थे।